चंद खिलौने छीन कर के तुम मेरे हाथों से ।
क्युं ये किताबों का ज़खीरा थमा रहे हो ।।
छोटी सी जान देखो कैसी मुश्किल में फसी है।
समझ ही नहीं आ रहा की क्या समझा रहे हो।।
पोले पोले हाथों की लकीरें उभरी नहीं अभी ।
ये क्या चीज़ है किस्मत जो तुम बता रहे हो ।।
छोटे छोटे पैर छत पर जाने में थक जाते हैं ।
पहाड़ों में मुझे कौनसी मंज़िलें दिखा रहे हो ।।
मुझसे खाने की थाली नहीं संभलती पापा ।
क्यूँ आप मुझे भारी भारी बस्ते दिला रहे हो ।।
मुझे नहीं पता इसे कैसी मुहब्बत कहते है ।
की खुद से दूर रखकर आप मुझे पढ़ा रहे हो।।