एक बेबस जान अपनी लाचारी के हवाले
चल तो रही थी पर दो पहियो के सहारे ,
ना जोश भरी जवानी थी, शेष ज़िंदगी भी थी कम
ढलती सी उम्र, रुकते से कदम….
आँखो में जैसे दर्द का सैलाब था
हिचखिचाती ज़बान में शायद कोई गहरा घाव था,
– “भिखारी नही मजबूर हूँ मै
वक्त ने मारा है मुझे, हालातो से चकनाचूर हूँ मै….”
आशा भरे उनके नयन छलक ही गये
कुछ लोगो ने बात सुनी, कुछ अनदेखा कर पलट भी गये,
दिमाग़ मे शक था पर आँखो पर उनकी विश्वास भी
क्यूंकी कुछ लोग करते है आज भावनाओ का व्यापार भी…
बेबसी ने उनकी एक पल में जिंझोड़ दिया
हर चेहरे पर से एक परदा उठा दिया,
वो तो चले गये पर एक सवाल रह गया
कुछ पल में ही चेहरा उनका बहुत कुछ कह गया…
लाचारी सिर्फ़ दौलत की है???
या इसकी कोई और भी कहानी है,
कोई लाचार है सेहत से तो कोई रिश्तो से भी
कोई वक़्त से तो कोई उम्मीदो से भी…
कौन बेबस है, कौन खुशियो के हवाले,
विश्वास रख मिलेगा सब अपने कर्मो के सहारे…
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