मुझे भी पानी बनना है,
बूँद बूँद जुड़ एक दिन समंदर बनना है…
जैसे निस्छल निस्वार्थ है वो,
मुझे भी इतना निर्मल बनना है…
जितनी सहजता से नकारात्मकता को समा लेता है,
मुझे भी वैसा सहनशील दरिया बनना है…
मुझे भी पानी बनना है,
बूँद बूँद जुड़ एक दिन समंदर बनना है…
स्वाभाव में है जिसके नदी बन बहते रहना ,
मुझे भी ऐसा अग्रसर राही बनना है…
जैसे वो पत्थर पर चोट कर रास्ता बना लेता है,
मुझे भी वैसा बहादुर सैनिक बनना है…
मुझे भी पानी बनना है,
बूँद बूँद जुड़ एक दिन समंदर बनना है…
जैसे वो शहर शहर सफ़र तय करता है,
मुझे भी यूँही अपनी मंज़िलो का रास्ता तय करना है…
जैसे वो ऊँचे पहाड़ो से गिरकर भी संभाल जाता है,
मुझे भी मुश्किल वक़्त से हंसकर निकलना है…
मुझे भी पानी बनना है,
बूँद बूँद जुड़ एक दिन समंदर बनना है..
जैसे वो गर्मी मे सबको ठंडक देता है,
मुझे भी उस सा शीतल बनना है…
जैसे नाम है उसका दुनिया में,
मुझे भी मेरा नाम अमर करना है…
मुझे भी पानी बनना है,
बूँद बूँद जुड़ एक दिन समंदर बनना है..
8 Comments
Toooooo gud….superb
Woooow beautiful poem
Ati sudar….god bless u
Superb……keep it up
Wow.. awesome poem ever read .. superb anjali Sharma 👌
Very deep thought …awesome dear😊👍🏻
It’s just Awesome..👍
Jabardast!!!!!!!!!!!!!!