मंज़िल

ना जाने किस दिशा में, किस मंज़िल की ओर पर सब भाग रहे है

रात को सोने की खबर नहीं पर सुबह सब वक्त से जाग रहे है,

 

कुछ ख़्वाहिशें अपनो की, कुछ अपने ख्वाब लिए

कभी खुद को तो कभी खुदा को भी जाँच रहे है

अपना पता नही औरो के गिरेबान झाँक रहे है

ना जाने किस दिशा में, किस मंज़िल की ओर सब भाग रहे है..

 

कुछ सावन मे भी झड़ रहे है, कुछ पतझड़ में भी खिल रहे है

विश्वास है तो तूफान मे भी टिके है, नही तो हवा में भी हिल रहे है

खाने मे कचरा है पर पानी को भी छान रहे है

ना जाने किस दिशा में, किस मंज़िल की ओर सब भाग रहे है..

 

घर क पते नामो से मकान नम्बरो में तब्दील हुए

अपनो के गम छोड़, गैरो की महफ़िल में शामिल हुए

कल कुछ चाहा था, आज कुछ और माँग रहे है

ना जाने किस दिशा में, किस मंज़िल की ओर सब भाग रहे है..

 

अकेले आए थे, अकेले जाना है, फिर क्यूँ इतना हाँफ रहे है

सोचो जरा, नींद में चल रहे है या सच में हम जाग रहे है??

16 Comments

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    Nice poem..keep it up.. Waiting for the new one

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    Very inspiring great lines .

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    Great poetry….. Waiting for more of such good poetry by you anjali sharma

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    solid poem the last line “socho…. nind me chal rahe ya sach me jag rahe hai ” awesom keep it up ……

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    Very nice………keep it up 👏👏👏👏👏

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    👍👍👍👍

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    Very true and outstanding poem … Absolutely co-relates with the present scenario .. 👍

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    What an approach with these amazing lines … On the current scenario.. keep it up.. well done 👍😃

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    wow di it’s really inspiring

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    Nice lines….👍

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    एक ही मंजिल है, अलग है रास्ते पर एक ही है तराना।
    सब को एक दिन घर वापस लौट के है आना।।

    चलना ही जिंदगी है , चलना सब को पड़ेगा।
    जो चल नही सकेगा वो आगे नही बढेगा।।

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वक़्त
April 5, 2017
पापा
April 8, 2017